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- Koi Phool Dhoom Ke Patiyon Me
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ
वो ग़ज़ल का लहजा नया नया ना कहा हुआ ना सूना हुआ
जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक था दिल की किताब का
कहीं आसुओ से मिटा हुआ कहीं आंसुओ से लिखा हुआ
कहीं मील रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा था नदी के पास खड़ा हुआ
वही खत जिस पे जगहा जगहा दो दमकते होंठो के जाम थे
- Yun Hi Besabab Na Phira Karo
यूँ ही बेसबब ना फिरा करो
कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताबे
उन्हें चुपके चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी ना मिलाएगा
जो गले मिलोगे इतपाक से
ये नए मिजाज़ का शहर है
ज़रा फासले से मिला करो